***************** क्रोध एक प्रकार का क्षणिक पागलपन है - महात्मा गाँधी ************************ क्रोध में की गयी बातें अक्सर अंत में उलटी निकलती हैं मीनेंदर ************************ क्रोध या गुस्सा एक भावना है। दैहिक स्तर पर क्रोध करने/होने पर हृदय की गति बढ़ जाती है; रक्त चाँप बढ़ जाता है। यह भय से उपज सकता है। भय व्यवहार में स्पष्ट रूप से व्यक्त होता है व्यक्ति भय के कारण को रोकने की कोशिश करता है। |
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सवागत है
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रविवार, जुलाई 10
क्रोध यमराज है.
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बहुत अच्छे और प्रेरक विचार।
जवाब देंहटाएंप्रिय ब्लोग्गर मित्रो
जवाब देंहटाएंप्रणाम,
अब आपके लिये एक मोका है आप भेजिए अपनी कोई भी रचना जो जन्मदिन या दोस्ती पर लिखी गई हो! रचना आपकी स्वरचित होना अनिवार्य है! आपकी रचना मुझे 20 जुलाई तक मिल जानी चाहिए! इसके बाद आयी हुई रचना स्वीकार नहीं की जायेगी! आप अपनी रचना हमें "यूनिकोड" फांट में ही भेंजें! आप एक से अधिक रचना भी भेजें सकते हो! रचना के साथ आप चाहें तो अपनी फोटो, वेब लिंक(ब्लॉग लिंक), ई-मेल व नाम भी अपनी पोस्ट में लिख सकते है! प्रथम स्थान पर आने वाले रचनाकर को एक प्रमाण पत्र दिया जायेगा! रचना का चयन "स्मस हिन्दी ब्लॉग" द्वारा किया जायेगा! जो सभी को मान्य होगा!
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हेल्लो दोस्तों आगामीें..
sahi hai krodh ko vaise bhi vinash ki jad kaha jata hai.sarthak prastuti sawai singh rajpurohit ji.aabhar.
जवाब देंहटाएंbahut uttam vichar.sach me krodh anisht ko rasta dikhata hai.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे और प्रेरक विचार।
जवाब देंहटाएंक्रोध इन्सान को उसी तरह खा जाता है जिस तरह कपडे को कीड़े खा जाते है .
जवाब देंहटाएंउत्तम विचार।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंvery true .
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही...सभी विचार उत्तम
जवाब देंहटाएंआप सब का तहे दिल से शुक्रिया मेरे ब्लॉग पे आने के लिए और टिप्पणियां देने के लिए!
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