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सोमवार, जुलाई 4

बुद्ध ने अपने समस्त भौतिक सुखों का त्याग किया..


बुद्ध ने अपने समस्त भौतिक सुखों का त्याग किया क्योंकि वे संपूर्ण विश्व के साथ यह खुशी बांटना चाहते थे जो मात्र सत्य की खोज में कष्ट भोगने तथा बलिदान देने वालों को ही प्राप्त होती है।

              महात्मा गांधी


9 टिप्‍पणियां:

  1. aapke blog par aakar aisee achchhi shikshayen milti hain ki yahan bar bar aana hame pasand hai.bahut shandar prastuti.aabhar

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  2. आदरणीय शालिनी कौशिक जी
    आपकी सुधी टिप्पणी के लिए आभारी हूं आपका और ब्लॉग को पसन्द करने के लिए हार्दिक धन्यवाद!

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  3. बेनामी7/04/2011 04:16:00 pm

    "बुद्ध" वे कहलाते हैं, जिन्होने सालों के ध्यान के बाद यथार्थता का सत्य भाव पहचाना हो । इस पहचान को बोधि नाम दिया गया है । जो भी "अज्ञानता की नींद" से जागते हैं, वे "बुद्ध" कहलाते हैं । कहा जाता है कि बुद्ध शाक्यमुनि केवल एक बुद्ध हैं - उनके पहले बहुत सारे थे और भविष्य में और होंगे । उनका कहना था कि कोई भी बुद्ध बन सकता है अगर वह उनके "धर्म" के अनुसार एक धार्मिक जीवन जीए और अपनी बुद्धि को शुद्ध करे । बौद्ध धर्म का अन्तिम लक्ष्य है इस दुःख भरी स्थिति का अंत । "मैं केवल एक ही पदार्थ सिखाता हूँ - दुःख और दुःख निरोध" (बुद्ध) । बौद्ध धर्म के अनुयायी आर्य अष्टांग मार्ग के अनुसार जीकर अज्ञानता और दुःख से मुक्ति और निर्वाण पाने की कोशिश करते हैंगौतम बुद्ध से पाई गई ज्ञानता को बोधि कहलाते है । माना जाता है कि बोधि पाने के बाद ही संसार से छुटकारा पाया जा सकता है । सारी पारमिताओं (पूर्णताओं) की निष्पत्ति, चार आर्य सत्यों की पूरी समझ, और कर्म के निरोध से ही बोधि पाई जा सकती है । बुद्धं शरणं गच्छामि : मैं बुद्ध की शरण लेता हूँ।
    धम्मं शरणं गच्छामि : मैं धर्म की शरण लेता हूँ।
    एस धम्मो सनंतनो अर्थात यही है सनातन धर्म। बु‍द्ध का मार्ग ही सच्चे अर्थों में धर्म का मार्ग है। दोनों तरह की अतियों से अलग एकदम स्पष्ट और साफ। जिन्होंने इसे नहीं जाना उन्होंने कुछ नहीं जाना। बुद्ध को महात्मा या स्वामी कहने वाले उन्हें कतई नहीं जानते। बुद्ध सिर्फ बुद्ध जैसे हैं।

    बुद्ध इस भारत की आत्मा हैं। बुद्ध को जानने से भारत भी जाना हुआ माना जाएगा। बुद्ध को जानना अर्थात धर्म को जानना है।

    यह संयोग ही है कि वैशाख पूर्णिमा के दिन बुद्ध का जन्म नेपाल के लुम्बिनी में ईसा पूर्व 563 को हुआ। इसी दिन 528 ईसा पूर्व उन्होंने बोधगया में एक वृक्ष के ‍नीचे जाना कि सत्य क्या है और इसी दिन वे 483 ईसा पूर्व को 80 वर्ष की उम्र में दुनिया को कुशीनगर में अलविदा कह गए।

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  4. बेनामी7/04/2011 04:18:00 pm

    बहुत ही बढ़िया

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  5. जैसा बेनामी जी ने कहा कि-"बुद्ध" वे कहलाते हैं, जिन्होने सालों के ध्यान के बाद यथार्थता का सत्य भाव पहचाना हो । इस पहचान को बोधि नाम दिया गया है । जो भी "अज्ञानता की नींद" से जागते हैं, वे "बुद्ध" कहलाते हैं ।
    ऐसी मुझे जानकारी है कि लगभग ऐसी ही समस्त व्याख्या भगवान श्री महावीर स्वामी जी ने भी की थी.उन्होंने कहा था कि-आत्मा को परात्मा अपनी बुराइयों को खत्म करके बनाया जा सकता है. महात्मा बुध्द और भगवान श्री महावीर स्वामी जी का संदेश एक ही "कालचक्र" में फैला था.

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  6. आप सबका आभार यही मुझे उत्साहह प्रदान करेगा ...आपका शुक्रिया

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