शुक्रवार, अगस्त 26

संसार के विरुद्ध खड़े रहने के लिए शक्ति प्राप्त करने की जरूरत नहीं..


संसार के विरुद्ध खड़े रहने के लिए शक्ति प्राप्त करने की जरूरत नहीं है ईसा दुनिया के खिलाफ खड़े रहे, बुद्ध भी अपने जमाने के खिलाफ गए, प्रहलाद ने भी वैसा ही किया! ये सब नम्रता के धनि थे!  अकेले खड़े रहने की शक्ति नम्रता के बिना असंभव है!
                                                          महात्मा गाँधी
 "वन्दे मातरम्"            "वन्दे मातरम्" 

7 टिप्‍पणियां:

  1. बिलकुल सही कहा है और सार्थक रूप से प्रस्तुत किया है आपने सवाई सिंह जी.आभार .


    फ़ोर्ब्स की सूची :कृपया सही करें आकलन

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  2. आपने बिलकुल सही और सटीक लिखा है ...

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  3. एक बार एक आम आदमी जोर जोर से चिल्लारहा था, "प्रधानमंत्री निकम्मा है ."

    पुलिस के एक सिपाही ने सुना और उस की गर्दन पकड़ के दो रसीद किये और बोला, "चल थाने, प्रधानमंत्री की बेइज्ज़ती करता है?"

    वो बोला, "साहब मै तो कह रहा था फ़्रांस का प्रधानमंत्री निकम्मा है."

    ये सुन कर सिपाही ने दो और लगाए और बोला, "साले,बेवक़ूफ़ बनता है! क्या हमे नहीं पता कहाँका प्रधानमंत्री निकम्मा है?"


    *** है ध्येय हमारा दूर सही पर साहस भी तो क्या कम है
    हम राह अनेको साथी है कदमो मे अंगद का दम है
    असुरो की लन्का राख करे वह आग लगाने आते है ॥
    पग पग पर काटे बिछे हुये व्यवहार कुशलता हम मे है
    विश्वास विजय का अटल लिये निष्ठा कर्मठता हम मे है
    विजयी पुरखों की परम्परा अनमोल हमारी थाती है ॥.
    ************एक भारतीय ********************

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  4. ऐसा ही क्रोध हम सबमें है अब....और अगर इसमें उबाल आ गया तो क़यामत आ जायेगी....!!

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  5. लाजवाब प्रस्तुति..

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  6. आपका बहुत बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!

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