सोमवार, जुलाई 11

कंजूसी मैं तुझे जनता हूँ!



"कंजूसी मैं तुझे जानता हूँ! तू विनाश करने वाली और व्यथा देने वाली है!" 
                  अथर्ववेद 
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 "संसार में सबसे दयनीय कौन है ?  
जो धनवान होकर भी कंजूस है!" 

                      विद्यापति
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विवेक के साथ की गई कंजूसी कंजूसी नहीं कहलाती!
उसे मितव्ययिता कहते हैं। 

                                 सौजन्य  :-पत्रिका.कॉम 

16 टिप्‍पणियां:

  1. sahi hai samay samya par kanjoosi ke roop badal jaate hain kabhi kanjoosi labhdayak hai to kabhi nuksaan deh.achchi post.

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  2. bahut achchha sankalan.prernaspad.thanks sawai singh ji.

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  3. बात तो सौ टके सही है

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  4. मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है!लिंक्स दे रहा हूं!

    हेल्लो दोस्तों आगामी..

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  5. "कंजूसी मैं तुझे जनता हूँ!" पर प्रतिक्रिया देने के लिये आप सभी के विचारों ने मेरा उत्साह बढ़ाया हार्दिक धन्यवाद एवं बहुत-बहुत आभार

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  6.  अस्वस्थता के कारण करीब 20 दिनों से ब्लॉगजगत से दूर था
    आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,

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  7. सोलह आने सच कहा है| धन्यवाद|

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  8. तीनों कथन ............सत्य वचन , धारण योग्य

    कृपया प्रथम कथन में ........'जनता' की जगह 'जानता' कर दें
    दूसरी सूक्ति में......... 'धवन' की जगह 'धनवान' कर दें

    विशवास है अन्यथा न लेंगे

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  9. sawai singh ji ye blog achchha laga par zaroor aayen apka hardik swagat hai.

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  10. आदरणीय सुरेन्द्र सिंहजी ,
    सर्वप्रथम आपका बहुत बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी और मुझे मेरी गलती बताई इस के लिए आभार और अगर आगे भी आपको मेरी कोई गलती हो तो अपना छोटा भाई समझ के बता देना धन्यवाद.
    सवाई सिंह राजपुरोहित आगरा

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  11. आप सब का तहे दिल से शुक्रिया मेरे ब्लॉग पे आने के लिए और टिप्पणियां देने के लिए

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