"कंजूसी मैं तुझे जानता हूँ! तू विनाश करने वाली और व्यथा
देने वाली है!"
अथर्ववेद
"संसार में सबसे दयनीय
कौन है ?
जो धनवान
होकर भी कंजूस है!"
विद्यापति
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विवेक के साथ की गई कंजूसी कंजूसी नहीं कहलाती!
उसे मितव्ययिता कहते हैं।
सौजन्य :-पत्रिका.कॉम
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Good one !!
जवाब देंहटाएंsahi hai samay samya par kanjoosi ke roop badal jaate hain kabhi kanjoosi labhdayak hai to kabhi nuksaan deh.achchi post.
जवाब देंहटाएंbahut he sundar
जवाब देंहटाएंbahut achchha sankalan.prernaspad.thanks sawai singh ji.
जवाब देंहटाएंबात तो सौ टके सही है
जवाब देंहटाएंमेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है!लिंक्स दे रहा हूं!
जवाब देंहटाएंहेल्लो दोस्तों आगामी..
solah aane sach .aabhar
जवाब देंहटाएं"कंजूसी मैं तुझे जनता हूँ!" पर प्रतिक्रिया देने के लिये आप सभी के विचारों ने मेरा उत्साह बढ़ाया हार्दिक धन्यवाद एवं बहुत-बहुत आभार
जवाब देंहटाएंtruly brilliant..
जवाब देंहटाएंkeep writing......all the best
अस्वस्थता के कारण करीब 20 दिनों से ब्लॉगजगत से दूर था
जवाब देंहटाएंआप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,
सही बात
जवाब देंहटाएंसोलह आने सच कहा है| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंतीनों कथन ............सत्य वचन , धारण योग्य
जवाब देंहटाएंकृपया प्रथम कथन में ........'जनता' की जगह 'जानता' कर दें
दूसरी सूक्ति में......... 'धवन' की जगह 'धनवान' कर दें
विशवास है अन्यथा न लेंगे
sawai singh ji ye blog achchha laga par zaroor aayen apka hardik swagat hai.
जवाब देंहटाएंआदरणीय सुरेन्द्र सिंहजी ,
जवाब देंहटाएंसर्वप्रथम आपका बहुत बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी और मुझे मेरी गलती बताई इस के लिए आभार और अगर आगे भी आपको मेरी कोई गलती हो तो अपना छोटा भाई समझ के बता देना धन्यवाद.
सवाई सिंह राजपुरोहित आगरा
आप सब का तहे दिल से शुक्रिया मेरे ब्लॉग पे आने के लिए और टिप्पणियां देने के लिए
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